Success Story: कोरोना काल में मात्र 2 कमरे में शुरू की थी खेती, अब लाखों कमा रही सोनिया
Success in mushroom farming: खेती-बाड़ी करना आसान काम नहीं है। कभी-कभी भारी नुकसान का भी सामना करना पड़ता है। हाल के सालों में मशरूम की खेती किसानों के बीच खूब प्रसिद्ध हुई है, लेकिन कोरोना के समय में मशरूम की खेती ने सोनिया की तकदीर ही बदल दी।

हाइलाइट्स
- – कोरोना में ऑनलाइन मशरूम की खेती करना सीखी सोनिया
– आज हर माह 8-10 टन मशरूम का उत्पादन कर रही हैं
– इस खेती के जरिए उनके साथ 20 से अधिक महिलाएं भी जुड़ चुकी
– साल 2021 में बचत के पैसों से काम शुरू किया
– दो कमरों में 100-200 बैग से भी मशरूम उत्पादन शुरू किया
Success in mushroom farming: कुछ अलग करने की चाह में हरियाणा के सोनीपत की सोनिया ने खेती की शुरुआत कर न केवल महिलाओं और किसानों को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में भी भागीदार बन रही हैं। 40 वर्षीय सोनिया दहिया ने कोरोना में ऑनलाइन मशरूम की खेती करना सीखा और आज हर माह 8-10 टन मशरूम का उत्पादन कर रही हैं। अब वह राज्य के किसानों को मशरूम उत्पादन के लिए शुरुआती ट्रेनिंग से लेकर चैंबर बनाने तक का प्रशिक्षण दे रही हैं।
20 से अधिक महिलाएं भी जुड़ चुकी
आज इस खेती के जरिए उनके साथ 20 से अधिक महिलाएं भी जुड़ चुकी हैं। इस खेती के लिए उन्होंने रासायनिक खाद के बजाय खेतों में जलाई जाने वाली पराली और गेहूं की भूसी से कंपोस्ट बनाना शुरू किया। वह कहती हैं कि पहले किसान पराली जलाया करते थे, लेकिन अब हम काफी हद तक क्षेत्र के किसानों से पराली खरीदते हैं, जिससे उन्हें इसे जलाने की जरूरत नहीं पड़ती। इस काम के लिए सोनिया को हाल में हरियाणा सरकार की ओर से समानित किया गया।

बचत के पैसों से शुरू किया काम
वह कहती हैं कि मैंने पति के साथ मिलकर साल 2021 में बचत के पैसों से काम शुरू करते हुए दो ग्रोइंग रूम बनवाए और मशरूम उगाया। वह कहती हैं कि पहली बार 5,600 मशरूम बैग मंगवाए थे। वह किसानों को बताती हैं कि एक या दो कमरों में 100-200 बैग से भी मशरूम उत्पादन शुरू किया जा सकता है।
सबसे पहले क्षेत्र के अनुसार मशरूम की किस्म का चयन करें। इसके बाद प्लास्टिक बैग में कंपोस्ट और बीज को परत दर परत डालें और इसमें पानी इस तरह से छिड़के कि नमी बनी रहे। कमरे का तापमान कम बनाए रखने के लिए एसी का उपयोग कर सकते हैं। वह कहती हैं कि इस बात का ध्यान रखें कि अलग-अलग किस्म के लिए अलग-अलग तापमान की आवश्यकता होती है।
