Sunday Guest Editor: हिंदी के साथ छत्तीसगढ़ी में भी हो पढ़ाई, हो रहा बुरा बर्ताव: लता राठौर

Sunday Guest Editor: छत्तीसगढ़ी को केवल मनोरंजन तक ही सीमित रखा गया है, जबकि साल 2007 में ही इसे राजभाषा का दर्जा मिल चुका है। इसके बावजूद आज भी छत्तीसगढ़ी में शिक्षा नहीं दी जाती। राज्य शिक्षा बोर्ड में हिंदी के साथ इसे पढ़ाया जाता है, लेकिन सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड में तो छत्तीसगढ़ी पढ़ाई ही नहीं जाती। छत्तीसगढ़ी को बोली बोलकर हर बार हाशिए पर डाल दिया जाता है।
Sunday Guest Editor: राजकिशोर शुक्ला का साथ मिला
मैं 24 सालों से लगातार लेखन कर रही हूं। लेखन का दायरा सामाजिक मुद्दों के साथ महिलाओं की स्थिति पर भी रहता है। इसी दौरान छत्तीसगढ़ी भाषा को बोलचाल के साथ शिक्षा में भी शामिल करने का लक्ष्य बनाया और साल 2015 में छत्तीसगढ़ी महिला क्रांति सेना बनाई जो इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए कार्य कर रही है। राजकिशोर शुक्ला हमारे आदर्श है वे बिना किसी लाभ के कई सालों से केवल छत्तीसगढ़ी के प्रचार के लिए कार्य कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ी भाषा के साथ होने वाले बर्ताव के कारण ही मैंने इसका प्रचार करना जीवन का लक्ष्य बना लिया।

महिलाएं ही हमारी कड़ी
कई राज्यों में उनकी मातृभाषा में ही पढ़ाई के साथ ही सरकारी कामकाज भी किया जाता है लेकिन हमारे प्रदेश में ऐसा नहीं है। इस कारण ही हमारी सेना लगातार अपनी संस्कृति से जोड़ने के लिए कार्य कर रही हैं और इसके लिए हमने महिलाओं को ही प्राथमिकता में रखा। कला और संस्कृति हमारे जीवन के दो अभिन्न अंग हैं, जिससे व्यक्ति का विकास तो होता है। अपनी मातृभाषा में बोलना और शिक्षा लेना किसी भी बच्चे के विकास की पहली सीढ़ी होना चाहिए।
भाषा बचाने हुए एकजुट
28 नवंबर 2007 को छत्तीसगढ़ी राजभाषा बनी थी और 85 प्रतिशत लोग छत्तीसगढ़ी बोलते हैं। फिर भी न तो छत्तीसगढ़ी भाषा स्कूली शिक्षा का माध्यम बनी और ना ही कोई सरकारी कामकाज इसमें हो रहा है। छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के प्रांतीय संयोजक नंदकिशोर शुक्ला इस बात से बहुत ही विचलित थे। तब उनके साथ छत्तीसगढ़िया महिला क्रांति सेना की सभी बहनों ने अपनी भाषा को बचाने के लिए एकजुट होकर कार्य करना शुरू किया।
समाजसेविका लता राठौर ने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा के साथ होने वाले बर्ताव के कारण ही मैंने इसका प्रचार करना जीवन का लक्ष्य बना लिया।