शरीर साथ नहीं देता था लेकिन हौंसले की उड़ान ने दिलाया मुकाम
Kavita suffering from Cerebral Palsy says we need support not help
सेरेब्रल पाल्सी से पीडि़त कविता कहती है हमें हेल्प नहीं सपोर्ट चाहिए
रायपुर। लोगों की सोच को गलत साबित कर औरों के लिए मिसाल बनी ३० साल की सेरेब्रल पाल्सी से पीडि़त कविता बैंक ऑफ बड़ौदा में सम्मानजनक नौकरी कर रही हैं। कविता को देख कर लोग पहले कहते थे कि इसका जीवन तो बर्बाद हो गया अब यह कैसे जिएगी? लेकिन कविता की मां ने हिम्मत नहीं हारी और परिवार के तिरस्कार और तमाम परेशानियों का सामना करके अपनी बेटी को पूरा सपोर्ट दिया। कविता के शरीर में बहुत कम मूवमेंट होता है बात करते समय गर्दन हिलती है। किसी भी चीज की पकड़ जल्दी नहीं होती।
आज लोग कविता की तारीफ करते है उसकी मिसाल देते है। कविता की मां रानी पाठक कहती हैं कि मुझे गर्व है कि मैं कविता की मां हूं। वो बताती हैं कि कविता ६ साल की उम्र तक तो पलट भी नहीं पाती थी। उसे गोदी में लेकर हर जगह जाती थी। थोड़ी बड़ी हुई तो कुर्सी में बैठाकर उसे ले जाते थे। १२ साल की उम्र तक वो कुछ भी नहीं कर पाती थी। मां ने हर पग पर उसकी हिमम्त बढ़ाई। स्कूल में ९ वीं के बाद पढ़ नहीं पाई फिर प्राइवेट ही सारी परीक्षा दी और डबल एमए (इग्लिश और सोशलॉजी) में किया। साथ ही उसने पीजीडीसीए भी किया। वो मोटीवेशनल स्पीच भी देती है।
हमें हेल्प नहीं सपोर्ट चाहिए, हम किसी से कम नहीं
कविता, बैंक मां के साथ जाती है बैंक में सारा स्टाफ उसका सपोर्ट करता है। कविता कहती है कि मैं सोसायटी को यह कहना चाहती हूं कि हम नार्मल बच्चों जैसे नहीं है लेकिन हमें आपका तिरस्कार और मदद नहीं चाहिए। हमें आपका सपोर्ट चाहिए , जिससे हम नार्मल बच्चों से भी कहीं द्यादा काम कर सकते है।
कोपलवानी उसकी दूसरी मां
कविता की मां कहती है कि डिसएबल बच्चों की पहचान बनी राजधानी रायपुर की संस्था कोपलवानी की नींव रखने वाली पदमा शर्मा ने कविता को समझा उसे नौकरी दी थी। कविता की मां की आखों में आंसू आ जाते है वो कहती है कि जब मैं नहीं रहूंगी तो पदमा शर्मा उसकी दूसरी मां होगी। वो कहती है कि ऐसे बच्चों को यदि हम सपोर्ट करें तो वे उस मुकाम तक पहुंच जाते है जो नार्मल बच्चे भी नहीं कर पाते। आज मेरी कविता के अलावा दो बच्चे है दोनो नार्मल है लेकिन मेरी कविता ने समाज में अपनी एक पहचान बनाई है मैं गर्व से कहती हू कि मैं कविता की मां हूं।