गणतंत्र दिवस विशेष: संविधान निर्माण में इन महिलाओं की भी रही भूमिका

हमारे देश का संविधान विश्व का सबसे बड़ा और लिखित संविधान है। इस संविधान निर्माण में 350 से अधिक सदस्यों ने अपनी भागीदारी निभाई। संविधान को मूल रूप देने वाली समिति में 15 महिलाएं थीं, जिन्होंने संविधान के साथ-साथ भारतीय समाज के सुधार में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।

अमू स्वामीनाथन

राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पहचान रखने वाली अमू ने कम उम्र में ही अपने पिता को खो दिया। केरल में जन्मी अमू ने स्कूल नहीं जा पाई और छत पर छुप-छुप कर थोड़ी बहुत पढ़ाई की। जब 13 वर्ष की आयु में मद्रास के वकील से उनकी शादी करने की बात की गई तो अमू ने घरवालों के सामने यह शर्त रखी कि वह शादी तभी करेंगी जब उन्हें मद्रास जाकर शिक्षा लेने की अनुमति दी जाएगी। शादी के बाद उनके पति ने उन्हें पढ़ाया। संविधान सभा का सदस्य नियुक्त होने पर उन्होंने महिला समानता के अधिकारों की पैरवी की।

लीला रॉय

1946 में लीला रॉय संविधान सभा में शामिल हुईं और बहस में सक्रिय रुप से भाग लिया। उन्होंने हिंदू कोड बिल के तहत महिलाओं को सपत्ति का अधिकार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, हिंदी को राष्ट्रीय भाषा घोषित करने जैसे मामलों की जबरदस्त पैरवी की थी।

बैगम एजाज रसूल

संविधान सभा के सदस्यों में एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य थी। 2 अप्रेल, 1909 को जन्मीं एजाज को बैगम कदसिया एजाज रसूल के नाम से पुकारा जाता था। पंजाब के मलेरकोटला रियासत से संबंध रखने वाली एजाज मुस्लिम लीग की सदस्य थी। उन्होंने संविधान सभा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अल्पसंयकों के लिए आरक्षित सीटों की मांग को छोड़ने के लिए आम सहमति बनाने में अहम रोल अदा किया।

हंसा जीवराज मेहता

गुजरात की हंसा जीवराज मेहता नारीवादी लेखिका और जुझारू प्रवृत्ति की थी। वे संविधान सभा की सदस्य बनीं। मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा’ के कथन, ‘सभी पुरुष स्वतंत्र और समान पैदा होते हैं’, को संशोधित करके लिखा गया ‘सभी मनुष्य स्वतंत्र और समान पैदा होते हैं।’ और इस संशोधन का श्रेय जाता है हंसा जीवराज मेहता को। हंसा महिला अधिकारों की प्रबल पक्षधर थीं। वह संविधान सलाहकार समिति और मौलिक अधिकारों पर उप समिति की सदस्य भी थीं।

दक्षायनीवेलायुधन

दक्षायनी वेलायुधन संविधान सभा की सबसे युवा सदस्य होने के साथ संविधान सभा की एकमात्र दलित महिला सदस्य भी थीं। वह सामाजिक भेदभाव और ऊंच-नीच के खिलाफ थीं। उन्होंने मौलिक अधिकार, अल्पसंयक और जनजातीय एवं बहिष्कृत क्षेत्रों की सलाहकार समिति की सदस्य रहते हुए इनके प्रति अपने सुझाव दिए। उन्होंने विशेष रूप से राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति की पद्धति पर प्रकाश डाला। 1978 में 66 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

Sarita Tiwari

बीते 24 सालों से पत्रकारिता में है इस दौरान कई बडे अखबार में काम किया और अभी वर्तमान में पत्रिका समाचार पत्र रायपुर में अपनी सेवाए दे रही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय तक काम किया ।
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