पान की खेती कर छत्तीसगढ़ के इस किसान को मिली नई पहचान, देशभर में हो रही चर्चा
रायपुर। छत्तीसगढ़ में पान की खेती के लिये प्रसिद्ध राजनांदगांव जिले के छुईखदान में देशी कपूरी पान को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने एक नई पहचान दिलाई है। इंदिरा गांधी कृषि विश्विद्यालय के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में पान की खेती करने वाले छुईखदान के ग्राम धारा के किसान बन्टू राम महोबिया को पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण द्वारा कृषक किस्म “छूईखदान देशी कपूरी पान” के नाम से पंजीकृत कर नौ वर्षों तक इस किस्म के उत्पादन, विक्रय, विपणन, वितरण, आयात एवं निर्यात करने का एकाधिकार दिया गया है। इस प्रमाणपत्र के माध्यम से भारत सरकार महोबिया को भारत में कहीं भी अपनी पंजीकृत किस्म का विपणन करने का विशेष लाइसेन्स प्रदान किया गया है।
बन्टू राम महोबिया छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जिले के ग्राम धारा के निवासी है। कई दशकों से ये परंपरागत तरीके से देशी कपूरी पान की खेती करते आ रहे है। इस पान का परीक्षण कलकत्ता और बैगलोर में स्थित DSU सेंटर में किया गया है। भारत में पंजीकृत यह पहली पान की किस्म है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में कपूरी पान का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। वर्षों से यह पान डोंगरगढ़ की बम्लेश्वरी माता को अर्पित किया गया है। सांस्कृतिक महत्व के अलावा कपूरी पान के अन्य कई लाभ भी है।
अनुसंधान के अनुसार, यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालता है और पाचन संबंधी समस्याओं में भी मददगार साबित होता है। साथ ही, यह अनेक गंभीर बीमारियों के जोखिम को भी कम करने में मदद करता है। कपूरी पान का सेवन गर्मियों में किया जाता है जिससे शरीर में शीतलता की अनुभूति होती है।
कपूरी देशी पान की पत्तियां पीले हरे रंग की दीर्घ वृत्ताकार, डंठल की लंबाई 6.94 से.मी. डंठल की मोटाई 1.69 से.मी., पत्ती की लंबाई 9.70 से.मी. तथा चैड़ाई 6.64 से.मी. पत्ती क्षेत्र सूचकांक 3.94 से.मी. पत्ती का वजन 12.84 ग्रा. तथा पत्तियों की उपज 80-85 प्रति पौध है। कपूरी पान के पंजीयन करने में डॉ. नितिन रस्तोगी, डॉ.एलिस तिरकी, डाॅ. आरती गुहे, डाॅ. बी.एस. असाटी एवं डॉ. अविनाश गुप्ता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. गिरीश चंदेल और निदेशक अनुसंधान डॉ. विवेक त्रिपाठी के कुशल नेतृत्व में यह कार्य सम्पन्न हो सका।