पेरिस का नहीं… ये है अम्बिकापुर का एफिल टावर, लोग हो रहे आकर्षित

अंबिकापुर. नगर निगम अंबिकापुर द्वारा सेनेटरी पार्क में पुराने एसएलआरएम सेंटर की मरम्मत से निकले कबाड़ लोहे का उपयोग कर विश्व प्रसिद्ध एफिल टावर की प्रतिकृति का निर्माण किया गया है। यह परियोजना वेस्ट टू वंडर थीम पर आधारित है, जिसमें बेकार पड़ी वस्तुओं का रचनात्मक उपयोग कर उन्हें आकर्षक स्वरूप दिया गया है। पार्क को और अधिक सुंदर बनाने के लिए पुराने टायर, बोतलें, साइकिल रिंग आदि का भी प्रयोग किया गया है। इस पहल का उद्देश्य न केवल कचरे के पुन: उपयोग को बढ़ावा देना है, बल्कि शहरवासियों को स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुकता का संदेश देना है।

चिरमिरी में पुरी की तर्ज पर बन रहा भव्य जगन्नाथ मंदिर

चिरमिरी के चित्ताझोर पोड़ी में पुरी की तर्ज पर जगन्नाथ मंदिर बनाया जा रहा है। नीलगिरी पहाड़ पर मंदिर परिसर 63 एकड़ में फैला हुआ है। यह क्षेत्रफल में छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा जगन्नाथ मंदिर माना जा रहा है। हालांकि, निर्माण शुरू होने के 43 साल बाद भी कुछ कार्य शेष है। 95 फीसदी काम पूरा हो गया है। परिसर में माता विमला और महालक्ष्मी मंदिर पूरा होने के बाद जगन्नाथ मंदिर निर्माण पूरा माना जाएगा।

ऐसी शुरू हुई निर्माण की प्रक्रिया : उत्कल समाज के मुताबिक चिरमिरी में 1980 के दौरान कोयला खदानें खुली थीं। उस समय कोयला खदान में काम करने ओडिशा से बड़ी संख्या में मजदूर आए। एसईसीएल में लोडर (जनरल मजदूर) का कार्य करते थे। सेवानिवृत्त के बाद वे चिरमिरी में ही बस गए हैं। लेकिन उनकी आराध्य देवता महाप्रभु जगन्नाथ की पूजा अर्चना के लिए हर महीने जगन्नाथ मंदिर पुरी जाते थे।

एसईसीएल से छुट्टी लेने के कारण उत्पादन प्रभावित होता था। इसे देखते हुए उस समय पुरी जगन्नाथ मंदिर के समान दूसरा मंदिर बनाने का संकल्प लिया। वर्ष 1981 में एनसीपीएच कॉलरी में कार्यरत एच.के. मिश्रा ने नीलगिरी पहाड़ पर ध्वज फहराया और 1982 में नीलगिरी पहाड़ पर जगन्नाथ मंदिर बनाने का कार्य प्रारंभ हुआ।

पुरी के ट्रस्ट की अनुमति से लाई थी लकड़ी : जगन्नाथ सेवा संघ के मुताबिक मंदिर निर्माण कराने से ओडिशा के राजा दिव्य सिंहदेव और पुरी के ट्रस्ट की अनुमति से लकड़ी लाई गई थी। फिर पुरी जगन्नाथ मंदिर में जिस नीम की लकड़ी से मूर्ति बनी थी, उसी लकड़ी से चिरमिरी में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा बनाई गई है।

मंदिर का निर्माण ओडिशा के गंजाम जिले के मथुरा गांव के कारीगरों ने किया

महंत कल्पतरु महाराज की देखरेख निर्माण कर 2006 में प्राण प्रतिष्ठा हुई

ओडिशा के पुरी के बाद छत्तीसगढ़ में भगवान जगन्नाथ का सबसे बड़ा मंदिर

मंदिर परिसर 63 एकड़ में फैला हुआ है। यहां पौधरोपण भी किया गया है

पुरी की तर्ज पर महाप्रभु जगन्नाथ, सुभद्रा व बलराम की प्रतिमाएं स्थापित हैं

पहाड़ पर मंदिर होने के कारण पहुंचने के लिए 50 सीढ़ियां बनाई गई हैं।

पोड़ी जगन्नाथ मंदिर पुरी की तर्ज पर बना है। नीलगिरी पहाड़ी का एरिया करीब 63 एकड़ है। जहां मंदिर निर्माण हुआ है। बहुत जल्द मंदिर तैयार हो जाएगा। -नारायण नाहक, अध्यक्ष, श्रीश्री जगन्नाथ सेवा संघ चिरमिरी

Sarita Tiwari

बीते 24 सालों से पत्रकारिता में है इस दौरान कई बडे अखबार में काम किया और अभी वर्तमान में पत्रिका समाचार पत्र रायपुर में अपनी सेवाए दे रही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय तक काम किया ।
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