Nari Shakti: गुस्सा काबू में रहे, इस कारण पिता ने नीतू को बॉक्सर बनाया, मिलेगा अर्जुन अवॉर्ड
मिनी क्यूबा के नाम से मशहूर हरियाणा के भिवानी जिले की युवा मुक्केबाज नीतू घंघस का चयन अर्जुन अवॉर्ड के लिए किया गया है। 48 किग्रा भार वर्ग में विश्व चैंपियन नीतू यह सम्मान पाने वाली हरियाणा की तीसरी मुक्केबाज बनेंगी।
उनसे पहले कविता चहल व सोनिया लाठर अर्जुन अवॉर्ड हासिल कर चुकी है। नीतू की मां मुकेश देवी बताती हैं कि वह बचपन में बेहद शरारती थी और अक्सर अपने भाई-बहनों और स्कूल के बच्चों से झगड़ा करती थी। आए दिन स्कूल से उसकी शिकायतें आया करती थीं। ऐसे में नीतू के पिता जयभगवान ने बेटी को मुक्केबाजी में डाला ताकि वह वहां अपनी एनर्जी लगा सकें।
ट्रेनिंग के दौरान नीतू पर मुक्केबाजी के दिग्गज कोच जगदीश सिंह की नजर पड़ी। जगदीश भिवानी बॉक्सिंग क्लब के संस्थापक हैं और ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले विजेंदर सिंह के कोच भी रहे हैं। नीतू भी उनके क्लब में शामिल हो गईं। ट्रेनिंग के लिए नीतू रोजाना अपने पिता के साथ स्कूटर पर 40 किलोमीटर की यात्रा किया करती थीं। खास यह है कि नीतू भिवानी बॉक्सिंग क्लब की सातवीं अर्जुन अवॉर्डी हैं। इस बीच, जयभगवान ने कहा कि उनकी बेटी की उपलिब्धयों से अन्य बच्चियों को आगे बढ़ने की काफी प्रेरणा मिलेगी।
अवॉर्ड आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा : नीतू
नीतू अर्जुन अवॉर्ड हासिल करने से काफी खुश हैं। उन्होंने कहा कि यह अवॉर्ड उन्हें आगे बढ़ने और अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करेगा। नीतू ने कहा, सच कहूं को अर्जुन अवॉर्ड से मेरा आत्मविश्वास काफी बढ़ेगा और आगे तैयारी करने के लिए प्रेरित करेगा। मेरा लक्ष्य अब 2026 में होने वाले कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीतना है। इसके बाद मैं 2028 ओलंपिक के लिए तैयारी और वहां पदक जीतने की कोशिश करूंगी।
नीतू के पिता चंडीगढ़ में राज्य सरकार के कर्मचारी हैं। मामूली आय वाले जयभगवान ने अपनी बेटी को मुक्केबाज बनाने के लिए नौकरी दांव पर लगा दी। जयभगवान ने तीन साल की अवैतनिक छु़ट्टी ली और बेटी को मुक्केबाज बनाने में जुट गए। उन्होंने घर चलाने के लिए अपनी छोटी सी जमीन पर खेती करना शुरू किया। नीतू की ट्रेनिंग व डाइट पर खर्च के लिए छह लाख रुपए का लोन भी लिया।
निराश नीतू छोड़ना चाहती थी मुक्केबाजी
नीतू ने 12 साल की उम्र में मुक्केबाजी की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी। लेकिन पहले दो-तीन साल उन्हें कोई सफलता नहीं मिली, जिससे वे निराश हो गईं। ऐसे में नीतू ने मुक्केबाजी छोड़ने का फैसला कर लिया था, लेकिन उनके पिता ने उन्हें समझाया और बेहतर ट्रेनिंग दिलवाने का वादा किया।