नारी शक्ति: पुरखों की विरासत को सहेजने के लिए कपड़ों पर शुरू की गोदना कला
सरिता दुबे. आदिवासियों में गोदना गुदवाने की परंपरा है लेकिन समय के साथ यह विलुप्त होती जा रही है। इसी को बचाने के लिए अंबिकापुर के जमगला गांव की 30 साल की तीजो पावले ने इसे कपड़ों पर उकेरना शुरू किया, तो उनके बनाए कपड़े एक ओर जहां कई राज्यों के लोगों की पहली पसंद बने, वहीं आदिवासियों की गोदना परंपरा का भी सरंक्षण हुआ। कक्षा 5 वीं तक पढ़ीं तीजो पावले आज कई शहरों और गांवों में जाकर महिलाओं को इसका प्रशिक्षण देती हैं। तीजो के बनाए कपड़ों की ऑनलाइन प्लेटफार्म के जरिए बिक्री होती है। गोदना आर्ट से बने दुपट्टे, रुमाल, बेडशीट व अन्य आर्टपीस की बहुत मांग है।
ससुराल आने के बाद सीखी यह कला
तीजो पावले के परिवार के लोग इसे शरीर पर बनाते थे लेकिन ससुराल आने पर तीजो ने देखा कि उसकी जेठानी, सफियानो पावले कपड़ों पर गोदना करती हैं। तीजो ने भी उन्हीं से इसे सीखा और उसके बाद प्रदेश के कई जिलों में जाकर इसका प्रशिक्षण देने लगीं। पति के निधन के बाद भी तीजो ने अपने तीन बच्चों का लालन-पालन इसी कला के जरिए किया।
सोच यह: महान सपने देखने वाले ही जीवन में संघर्षों का समान करते हैं।
महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर वह बताती हैं कि कपड़ों पर इस कला से गोड जनजाति की महिलाएं आत्मनिर्भर भी हो गई हैं। जमगला गांव में लगभग 30 गोड जनजाति के परिवारों की रोजी-रोटी का साधन यही गोदना कला है। तीजो ने बताया कि हमें अपने उत्पाद को बेचने के लिए सरकार द्वारा ऑनलाइन प्लेटफार्म उपलब्ध कराया जाता है। हम उसी के अनुसार कपड़े तैयार करते हैं।