छत्तीसगढ़ की स्वर कोकिला जयंती कहती है…..
लता मंगेशकर को बताया था कि ऐसे गाते है छत्तीसगढ़ी गाना,
अब गुमनामी में जी रही लेकिन कला को जिंदा रखा
रायपुर। दुर्ग में रहने वाली 72 साल की जयंती छत्तीसगढ़ी भाषा कि पहली फिल्म ‘कहि देबे संदेश ’ के लिए गाए गाने वाले छत्तीसगढ़ी गीत को उन्होंने लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी को गाकर सुनाया और समझाया कि छत्तीसगढ़ी गाना इस तरह गाते है। गीतों को सुनकर गाने वाली जयंती पढऩा नहीं जानती थी, उनकी मधुर आवाज को लोगों तक पहुंचाने के लिए लता मंगेशकर ने उनकी पढ़ाई की व्यवस्था की। उसके बाद जयंती गानों को पढक़र गाने लगी।
गरीबी से जूझते हुए तमाम लाग लपेट और प्रचार से दूर रहकर अपनी कला को जिंदा रखने वाली जयंती की आवाज में आज भी वही खनक और ताजगी है। जयंती कहती हैं कि, पूरा जीवन कलाकारी को दिया अपने लिए कुछ नहीं किया अब यही इच्छा है कि उन्होंने जिन गीतों को स्वर दिया है। उन गीतों को उनके स्वर में सुरक्षित रखा जाए, जिससे आने वाली पीढ़ी छत्तीसगढ़ी कला संस्कृति को जान सके। इसके लिए शासन से मदद की गुहार करती है।
बेटी ने सहेजा है गायकी को जयंती का पूरा परिवार गीत-संगीत के प्रति समर्पित रहा, लेकिन सरकार की बेरूखी और जागरूकता नहीं होने के कारण आज उनका परिवार गरीबी से जूझ रहा है बेटी को अपना राज्य छोडक़र दूसरे राज्य जाना पड़ और आज वो वहीं पर अपने गायन की धरोहर से लोगों को परिचित करा रही है।
दाऊ मदरा के साथ हुई कला की शुरुआत ‘अरपा पैरी के धार’ गाने को सबसे पहले गाने वाली जयंती ने दाऊ दुलार साव मदरा जी के साथ १२ साल की उम्र में अपनी कला यात्रा की शुरुआत कर छत्तीसगढ़ के कंठ कोकिला के रूप में पहचान बनाई, लेकिन आज गुमनामी का जीवन जी रही है।
दाऊ रामचंद देशमुख ने छत्तीसगढ़ का पहला लोक कला मंच चंदैनी गोंदा बनाया था। इस मंच को अपनी गायिकी से सजाने वाली जयंती के गाने साल 1970-80 में आकाशवाणी में बजा करते थे। लोग उनके गीतों के इतने दीवाने थे कि हर बुधवार को उनके गाने का इंतजार रहता था। मेले मड़ई में उनके ही गाए गीत ही चला करते थे। फिर अचानक ही उनके गानों का रिकार्ड गायब हो जाता है। वे हर उस अधिकारी और गीत-संगीत से जुड़े लोगों के पास जाती है लेकिन वे उसे यह कहकर लौटा देते है कि अब छत्तीसगढ़ी गानों को कोई नहीं सुनता।
मेरे साथ खेल किया गया
जयंती कहती है कि एक लोक गायिका के कहने पर मेरे गानों के रिकार्ड को हटा दिया गया। अपने अंदर की कला को जिंदा रखने की छटपटाहट है मगर गरीबी इसमें आड़े आ रही है। आज वो खटिया पर पड़े रहती है द्यादा चल फिर नहीं सकती, लेकिन पूरे समय अपने पूराने दिनों को याद करके हुए गाना गाती है तो आंखे नम हो जाती है।
छत्तीसगढ़ के जाने-माने गीतकार ठाकुर बद्री विशाल परमानंद, मुरली चंद्राकर, हेमनाथ वर्मा विकल , गन्नू दास मानिकपुरी दुलार सिंह, सुशील यादव, शेख मन्ना जैसे बड़े गीतकारों के लिखे गीतों को अपने सुरों में सजाया है। छत्तीसगढ़ के विभिन्न बड़े मंच सहित कोलकाता दिल्ली मुंबई आगरा उज्जैन जयपुर सहित देश के बड़े नगरों में अपनी सुरीली आवाज की जादू बिखेरने वाली कंठ कोकिला जयंती के पास प्रमाण प्रमाण पत्र एवं सम्मान पत्र का अंबार है।