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सरकार से लिया पंगा, मिली जीत अब जंगल की खाली जमीन में लगा रही पौधे

आदिवासी मनकाय ने वन अधिकार कानून की लड़ाई लड़ी, 21 घरों का मिला

रायपुर। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के अंबागढ़ चौकी के सोनोली गांव की आदिवासी गौंड समुदाय की 73 साल की महिला मनकाय जो कभी स्कूल नहीं गई उसने अपने जंगल को बचाने के लिए वन अधिकार कानून का सहारा लेकर लंबी लड़ाई लड़ी और अपने जंगल की जमीन में वन विभाग की अवैध कटाई को रोका साथ ही काटे गए पेड़ को जब्त कर ग्रामसभा के सुपुर्द किया। मनकाय बाई के नेतृत्व ने सारे गांव को एकजुट कर दिया था, अब वे नए सिरे से जंगल को संवारने के लिए स्थानीय संस्था की मदद ले रहे हैं। हर साल गांव वाले 3 लाख तक के सीताफल बेच लेते है इस बार गांववालों ने डबरी और तालाब के किनारे जिमीकंद और कोचाईकंद के पौधे लगाए है.

आदिवासी लोगों का घर है सोनोली

सोनोली 21 घरों का एक छोटा सा गांव है , जिसमें गोंड आदिवासियों का निवास है, और केवल 5 दलित (एससी) परिवार हैं। सोनोली में, केवल 3 परिवारों के पास 2 हेक्टेयर से अधिक जमीन है। वनोपज ही उनकी जीविका का साधन है। एक समय था जब सोनोली के आस-पास घने जंगल थे, लेकिन पानाबरस परियोजना के नाम पर यहां इमारती लकड़ी के लिए पुराने जंगल को उजाड़ कर सागौन का प्लान्टेशन किया गया था, जो उपेक्षा और भ्रष्टाचार के चलते पनप नहीं पाया।

अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में मोगरा बैराज बनने पर सोनोली के कुछ परिवारों ने अपनी जमीन भी खो दी। सृष्टि सामाजिक संस्था के कार्यक्रम प्रभारी जयदेव मोहुरले कहते है कि हम गांववालों को उनके अधिकारों के लिए सजग करते है और इसी का परिणाम था कि मनकय ने इतना बड़ा कदम उठाया और गांव वालों को समझाया जिससे उनके जंगल उनके पास है।

मनकाय बाई ने रोका वन विभाग को

मनकाय बाई ने ४ साल पहले वन विकास निगम को उनकी जमीन पर पेड़ काटने का विरोध किया था और उस समय तक वन विभाग १०० पेड़ काट चुका था। मनकाय बाई ने गांववालों के सहयोग से उन काटे गए पेड़ को जब्त कर ग्रामसभा के सुपुर्द किया। और कलेक्टर, एसडीएस से शिकायत की। मनकाय बाई बताती है कि उन्हें पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन भी ले जाया गया। तब उपखंड के अधिकारी ने जांच के लिए गांव का दौरा भी किया। समुदाय ने स्पष्ट शब्दों में समझाया कि वे वन संरक्षण में विश्वास करते हैं और सिर्फ अपने लाभ के लिए जंगल का उपयोग नहीं करते । उन्होंने वन विभाग की कार्य योजना को खारिज कर दिया और दावा किया कि उनके गांव को सामुदायिक वनाधिकार मिला है, जिसमें जंगल के उपयोग को निर्धारित करना उनका अधिकार है।

Sarita Tiwari

बीते 24 सालों से पत्रकारिता में है इस दौरान कई बडे अखबार में काम किया और अभी वर्तमान में पत्रिका समाचार पत्र रायपुर में अपनी सेवाए दे रही हैं। महिलाओं के मुद्दों पर लंबे समय तक काम किया ।

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