मोदी पर वाजपेयी जैसा दबाव, ये रिपोर्ट देख लोगों को लगेगा झटका
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब ‘सबका साथ’ चाहिए. क्योंकि 2014 और 2019 में तो बीजेपी के पास बहुमत की 272 से ज्यादा सीटें थीं. लेकिन इस बार बीजेपी की गाड़ी 240 पर अटक गई है. हालांकि, ये साफ हो गया है कि नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं और 9 जून को शपथ ले सकते हैं.
लेकिन तीसरी बार एनडीए की सरकार में नरेंद्र मोदी को जिन दो पार्टियों की सबसे ज्यादा जरूरत है, उनमें एक है तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के चंद्रबाबू नायडू और दूसरी है नीतीश कुमार की जेडीयू. इन दोनों पार्टियों के पास 28 सांसद हैं और पांच साल तक एनडीए की सरकार बनाए रखने के लिए इनका साथ जरूरी बन जाता है.
नीतीश कुमार की जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी, एनडीए सरकार में कई अहम पद चाहती हैं. नीतीश कुमार ने जहां चार सांसदों पर एक मंत्री का फॉर्मूला दिया है. तो वहीं टीडीपी ने सड़क परिवहन, स्वास्थ्य और कृषि जैसे बड़े मंत्रालय मांगे हैं. इसके साथ ही टीडीपी की नजर लोकसभा स्पीकर की कुर्सी पर है. बताया जा रहा है कि टीडीपी लोकसभा स्पीकर का पद भी मांग रही है.
इससे पहले वाजपेयी सरकार में भी टीडीपी ने लोकसभा का स्पीकर पद रखा था. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में टीडीपी के दिवंगत नेता जीएमसी बालयोगी लोकसबा के अध्यक्ष थे. अब जब टीडीपी एक बार फिर एनडीए में अहम भूमिका आई है तो उसकी नजरें फिर स्पीकर की कुर्सी पर टिक गई हैं.
पर लोकसभा स्पीकर का पद इतना अहम क्यों है? और टीडीपी इस पद को क्यों चाहती है? ये समझते हैं, लेकिन उसके पहले जानते हैं कि लोकसभा स्पीकर का चुनाव कैसे होता है?
प्रोटेम स्पीकर, फिर स्पीकर
आम चुनाव होने और नई सरकार के गठन के बाद नए सदस्यों को शपथ दिलाने के लिए प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति की जाती है. प्रोटेम स्पीकर आमतौर पर लोकसभा के सबसे सीनियर सांसद को बनाया जाता है.
प्रोटेम स्पीकर की देखरेख में ही लोकसभा स्पीकर का चुनाव होता है. आम चुनाव के बाद सरकार और विपक्ष मिलकर स्पीकर के लिए उम्मीदवार का नाम घोषित करते हैं. इसके बाद प्रधानमंत्री और संसदीय कार्य मंत्री उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव करते हैं. अगर एक से ज्यादा उम्मीदवार हैं तो फिर बारी-बारी से प्रस्ताव रखा जाता है और जरूरत पड़ने पर वोटिंग भी कराई जाती है. जिसके नाम का प्रस्ताव मंजूरी होता है, उसे स्पीकर चुना जाता है.
स्पीकर का कार्यकाल उनके चुनाव की तारीख से लेकर अगली लोकसभा की पहली बैठक के ठीक पहले तक होता है. यानी, जब तक 18वीं लोकसभा की पहली बैठक नहीं होती, तब तक ओम बिरला ही स्पीकर रहेंगे.