आज मंदिरों में जो भीड़ है, वह किसकी; भक्तों या भिखारियों की? रमेश भाई ओझा ने कसा तंज
व्यासपीठ से रमेश भाई ओझा ने रविवार की कथा में दो सवाल उठाए। उन्होंने सत्संग और कथा में जिस तरह चमत्कार दिखाए जाते हैं, उसपर तंज करते हुए कहा कि सत्संग में आज रुचि नहीं, लोग अपने संशय के समाधान के लिए टोटका जानने पहुंचते हैं।
सत्संग व कथा में ऐसी जुट रही भीड़
बच्चे कैसे पास हो जाएं, कैसे नौकरी मिल जाए, कैसे धन आ जाए..? ऐसी भीड़ जुट रही है। उन्होंने यह भी कहा, धर्म की रक्षा माहौल खराब करने से नहीं होती, बल्कि इसके लिए संस्कार और संस्कृति का पालन करना जरूरी है। कथाकार ओझा जैनम मानस भवन में श्रीमद् भागवत पुराण की कथा सुना रहे हैं। बड़ा सवाल किया कि आज मंदिरों में जो भीड़ है वह किसकी है भक्तों की या भिखारियों की? भगवान को चाहने वालों की? धर्म की रक्षा तो संस्कृति व संस्कार से ही हो सकती है। श्रेष्ठ धर्म वही, जिसका आचरण करें। तर्क से परमात्मा को जानने का प्रयास करोगे तो कभी नहीं पाओगे। संशय छुपाकर या बचाकर न रखो इसे योग्य व्यक्ति के समक्ष प्रगट कर दो।
अमीरी-गरीबी की खाई को पाटना होगा
रामायण के उत्तरकांड में तुलसीदास ने लिखा है कि दरिद्रता जैसा दुख नहीं और सत्संग जैसा सुख नहीं। अभावग्रस्त आदमी मंदिर जाएगा भी तो भगवान से मांगने, इसलिए जिदंगी की जो जरूरतें हैं रोटी कपड़ा और मकान पहले वो जुटाओ। सत्संग की सात्विक चर्चा से आध्यात्मिक उन्नति मिलती है। अमीरी-गरीबी की खाई को पाटना जरूरी है। इसी से यह विषमता मिट सकती है और सामाजिक समरसता समाज में बन सकती है।
कई महत्वपूर्ण सूत्र बताए
जैनम मानस भवन में श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन भगवताचार्य रमेश भाई ओझा ने श्रीमद्भागवत कथा से जोड़कर कई महत्वपूर्ण सूत्र बताए। भगवान ने जो किया है वह भागवत है और जो गाया है वह गीता है। भागवत गीता में 18 हजार श्लोक हैं और गीता में 7 सौ। भगवत ज्ञान के तत्व को श्रीमद्भागवत कथा-रामायण से समझना बहुत ही सरल हो जाता है।