Women Auto चलाती नजर आती है यह दीदियां, लोग भी खुद को करते है सुरक्षित महसूस
महिलाओं की पकड़ अब हर क्षेत्र में, इसलिए सुरक्षित होकर करती है सैर
Raipur News रायपुर। सवारी वाहन चलाना पहले पुरूषों का कार्य समझा जाता था, लेकिन समय बीतने के साथ ही जीवन जीने का तरीका और नजरियां बदल रहा है और बदलाव की यह बानगी आज हर क्षेत्र में नजर आती है। शायद इसलिए कहा जाता है कि आज महिलाएं सशक्त हो रही है, जबकि महिलाएं तो सनातन से सशक्त रही है। मुगलों ने जब भारत पर आक्रमण किया था तब वे हिंदू महिलाओं को पकड़ कर ले जाते थे। अपनी मां बहनों की रक्षा के लिए ही हिंदुओं ने यह व्यवस्था बनाई कि महिलाएं घर को संभाले और पुरूष बाहर जाकर काम करें।
उस समय से चली आ रही परिपाटी ने समाज में महिलाओं को घर तक सीमित कर दिया साथ ही समाज की सोच भी बदली। घर में रहकर काम करने के महत्व को पुरूष समझ नहीं पाएं। समय के साथ जीवन शैली बदली तो महिलाओं को घर के अलावा बाहर जाकर भी काम करना पड़ा, इससे हुआ यह कि महिलाओं पर दोहरी जिम्मेदारी आ गई।
इन सारे हालातों के बावजूद महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी साबित कर रही है। महिलाएं पहले से सशक्त है अब हालात बदले है तो महिलाएं घर के साथ बाहर भी कमाने निकल रही है।
राजधानी रायपुर में आज बाजारों में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए ई-रिक्शा को बेहतर साधन माना जा रहा है और अब इ-रिक्शा चलाने का काम महिलाएं बेहतर तरीके से कर रही है। शहर के नगर घड़ी चौक पर कई महिलाएं ई-रिक्शा में सवारी को ले जाती नजर आती है, हमने ई-रिक्शा चली रही निशा यादव से जाना कि आखिर वे अब कैसा महसूस करती है और कई उन्हें कई तरह के लोगों के साथ डील करना पड़ता होगा तो क्या वे आसानी से इसे कर लेती है ।
निशा कहती है पहले तो हमें बहुत खराब लगता था, थोड़ी शर्म भी आती थी। लोग हमारे साथ सवारी ऑटों में बैठने में सकुचाते थे, लेकिन समय के साथ बहुत कुछ बदला हैं। अब हमें आसानी से सवारी भी मिलने लगी है। इसी तरह बिलासपुर की हीरा कश्यप को लोग हीरा दीदी के नाम से जानते हैं। इन्होंने शहर में ई-रिक्शा संचालन की नींव रखी। आज उनके नक्शे कदम पर डेढ़ सौ महिलाओं ने इस क्षेत्र में स्वरोजगार ढूंढ लिया है।
चिंगराजपारा निवासी हीरा बताती हैं कि बचपन से ही उनका सपना कुछ अलग करने का था, पर पारिवारिक गरीबी की वजह से वो 9 वीं तक ही पढ़ाई कर सकीं। इसके बाद भी हिम्मत नहीं हारी। वो गृहणी बन कर घर की चहारदीवारी में कैद नहीं रहना चाहती थीं। लिहाजा शादी के बाद नर्सिंग होम में नौकरी की। यहां उन्हें 3 हजार मिलते थे। सोचा कि यह उनकी मंजिल नहीं है। आगे बढऩा है।
आईटीआई में सीखी ड्राइविंग
आईटीआई कोनी में फोर व्हीलर ड्राइविंग सीखी। इसके लिए उन्होंने दो अन्य महिलाओं संतोषी साहू व संतुला देवी पाटले को भी अपने साथ जोड़ा। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद किराए पर ऑटो रिक्शा चलाना शुरू किया। उन्हें लगा कि स्वयं का वाहन हो तो और अच्छा मुनाफा कमा सकती हैं। लिहाजा ई-रिक्शा लेने की ठानी। शासन की स्कीम का फायदा उठाते हुए श्रम विभाग से अनुदान प्राप्त कर और कुछ अपनी ओर से राशि लगा कर ई-रिक्शा खरीद लिया। आज महीने में औसतन 20 हजार रुपए कमा रही हैं। यही नहीं आगे की पढ़ाई भी शुरू कर दी है।
और कारवां बनता गया
हीरा जैसी महिलाओं के साथ के साथ आज शहर व आसपास क्षेत्रों की कई महिलाएं जुड़ चुकी हैं। हीरा हर जरूरतमंद महिलाओं को जो ड्राइविंग सीखाना चाहती हैं, मुफ्त में ट्रेनिंग भी दे रही हैं। यही नहीं, ई-रिक्शा खरीदने में भी उनकी हर संभव मदद कर रही हैं। वर्तमान में हीरा ई-रिक्शा ऑटो एसोसिएशन की अध्यक्ष भी हैं।
शुरू में काफी उपेक्षाएं झेलीं, पर हिम्मत नहीं हारी
बस्तर के रहने वाली जयमति कहती है कि पहले तो लोग हंसते थे कि महिलाएं ज्यादा रूर तक नहीं ले जा सकती इसलिए वे हमारे साथ बैठना पसंद नहीं करते है। हीरा बताती हैं कि जब उन्होंने इस लाइन को चुना तो रिक्शा चलाते देख लोग खिल्ली उड़ाते थे। इससे उस समय मन जरूर निराश होता था, पर स्वयं को संभाल कर हिम्मत के साथ अपने कर्म पथ पर चलती रहीं।
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