युवा उत्सव 3.0: मिट्टी कैफे के जरिए संवार रहीं विकलांगों का जीवन, जानिए कैसे
जब मैंने मिट्टी कैफे कॉन्सेप्ट की शुरुआत की तब हमें कुछ छात्रों के सहयोग से एक टिनशेड मिला था जो चूहों से भरा था। उस वक्त हमारे पास एक रूपया भी नहीं था। लेकिन हमने किसी तरह काम शुरू किया, क्योंकि विकलांगों के जीवन को आसान बनाना था। यह तभी हो पाता जब हम उनकी क्षमताओं को समझकर उनको बेहतर काम दें। हमारे पास कीर्ति नामक एक महिला हाथों के बल पर चलकर आई थी, वह व्हीलचेयर अफोर्ड नहीं कर सकती थी। वह पहली मैनेजर बनी।
हमारा लक्ष्य है कि दुनिया की एक बिलियन कीर्ति को रिचआउट करें और उन्हें रोजगार दें। यह कहा मिट्टी कैफे की फाउंडर अलीना आलम ने। वे शुक्रवार को डीडीयू ऑडिटोरियम में आयोजित राइजिंग भारत 2047 थीम पर युवा उत्सव 3.0 में शामिल होने आईं थीं। इस दौरान बातचीत में उन्होंने जर्नी शेयर की।
डेढ़ साल का बेबी
अलीना आलम लगभग 15 साल बाद अपने स्कूल की सहेली पल्लवी सरावगी से मिली। इस दौरान दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं था। दोनों को पता नहीं था कि वे इस तरह मिलेंगी। अलीना का डेढ़ साल का बेबी है।
आगे के लिए क्या लक्ष्य हैं?
- हमारा लक्ष्य है कि देश के हर शहर के एक कोने में मिट्टी कैफे हो और लोग दिव्यांगों की शक्तियों को पहचान सकें। हम दिव्यांग लोगों को सशक्त बनाने के लिए काम कर रहे हैं। आपको दिव्यांग लोगों के लिए काम करने की प्रेरणा कहाँ से मिली?
- मुझे लगता है कि हर व्यक्ति में कुछ विशेष होता है, और हमें उनकी क्षमताओं को पहचानने और उन्हें सम्मान देने की आवश्यकता है। मैंने एक डॉक्यूमेंट्री देखी, जिसने मुझे दिव्यांग लोगों के लिए काम करने की प्रेरणा दी। मिट्टी कैफे की शुरुआत कैसे हुई?
- मैंने उत्तर कर्नाटक के हुबली में पहला कैफे खोला। मेरे पास पैसे नहीं थे, लेकिन लोगों ने मुझे सहयोग किया। पहले कैफे की शुरुआत एक टीन शेड से हुई, जो चूहों से भरा हुआ था। कॉलेज के युवाओं ने जगह को चमका दिया।
दिव्यांग लोगों के प्रति दृष्टिकोण को बदलने के लिए क्या किया जा सकता है?
- मुझे लगता है कि हमें दिव्यांग लोगों को उनकी क्षमताओं के आधार पर देखना चाहिए, न कि उनकी विकलांगता के कारण। हमें उनकी शक्तियों को पहचानने और उन्हें सम्मान देने की आवश्यकता है। आपके प्रयास से परिवर्तन आया?
- हां, बिल्कुल। कैफे खुलने के बाद कई दिव्यांग लोगों को रोजगार मिला। वे अब अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। हमने 27 दिव्यांग जोडिय़ों की शादी भी करवाई है।