4 सरकारी नौकरी छोड़ संविधान का दामन थाम दिला रहीं न्याय, संविधान दिवस पर पढ़ें शिल्पी की ये कहानी
टी हुसैन. एक कानूनी कहावत है- न्याय में देरी न्याय से वंचित करने के समान है। देश आज भी करोड़ों ऐसे लोग हैं जिन्हें संविधान पर भरोसा है और वे न्याय की आस में हैं। रायपुर की शिल्पी सोनवानी न्याय दिलाने में यकीन रखती है। यही वजह है कि उन्होंने एक नहीं चार-चार सरकारी नौकरियां छोड़ीं और वकालत का पेशा अपनाया।
शिल्पी ने बताया, बचपन से ही समाजसेवा में रुचि थी। मैंने ऐसे लोगों को न्याय के लिए भटकते देखा है जो कभी कोर्ट की बिल्डिंग तक नहीं देखे हैं। ऐसे लोगों को न्याय दिलाना मुझे सुकून देता है। असहाय लोगों से मैं फीस नहीं लेती। इन दिनों वे जिला एवं सत्र न्यायालय रायपुर में काम कर रही हैं। संविधान दिवस पर जानिए उनकी कहानी।
सामाजिक कार्यों के दौरान मिली प्रेरणा
मेरा एक फाउंडेशन है जिसके तहत मैं गरीबों और समाज के पिछड़े लोगों के लिए कार्य कर रही हूं। इस दौरान मैंने पाया कि कई पक्षकार ऐसे हैं जिनकी सुनी नहीं जाती। कई सीधे-साधे लोग फंस जाते हैं, उनके पास कानूनी लड़ाई के लिए पैसे भी नहीं होते। तब मैंने सोचा कि वकालत ऐसा पेशा है जिसके जरिए ऐसे लोगों की मदद की जा सकती है।
2015 से वकालत
मैंने अपनी प्रैक्टिस हाईकोर्ट से शुरू की। साल 2015 से मैं वकालत कर रही हूं। मेरी नौकरी शिक्षाकर्मी, सांयिकी अधिकारी, स्टेनोग्राफर, टेक्सेशन ऑफिसर के तौर पर लगी, हालांकि मैंने डिप्टी कलेक्टर की तैयारी की थी।
पैसों की तंगी रही नहीं
पिता सेंट्रल गवर्नमेंट में थे। बहन रायपुर में एडीजे हैं। पति बैंक में मैनेजर हैं। इसलिए मुझे कभी पैसों की तंगी रही नहीं। मैंने वही किया जो मेरा दिल चाहता।