कोर्ट ने कहा- महिला जजों के लिए अनुकूल व संवेदनशील माहौल जरूरी..
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एनके सिंह की बेंच ने फैसले में महिला न्यायिक अधिकारियों के प्रति संवेदनशील होने पर जोर दिया।

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मध्यप्रदेश की दो महिला सिविल जजों की प्रोबेशन के दौरान बर्खास्तगी को खारिज करते हुए उन्हें बहाल करने के निर्देश दिए। प्रोबेशन के दौरान अच्छा कार्यप्रदर्शन नहीं करने के कारण हाईकोर्ट ने उन्हें बर्खास्त कर दिया था। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एनके सिंह की बेंच ने फैसले में महिला न्यायिक अधिकारियों के प्रति संवेदनशील होने पर जोर दिया।
कोर्ट ने कहा कि महिला जजों के काम का आंकलन करते समय उन्हें महिला होने के कारण होने वाली दिक्कतों को भी ध्यान में रखना होगा। हालांकि महिला होना खराब परफॉर्मेंस का बचाव नहीं हो सकता लेकिन उनके कामकाज के बारे में निर्णय लेते समय समग्र परिस्थितियों को देखना चाहिए। जस्टिस बीवी नागरत्ना के लिखे फैसले में कहा गया कि हम महिला जजों को कामकाज के लिए संवेदनशील और अनुकूल वातावरण नहीं दे सकते तो केवल उनकी संख्या बढ़ाना ही पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ने से न्यायिक निर्णयों, खासकर महिलाओं से संबंधित मामलों में, की गुणवत्ता में सुधार होगा।
दिक्कतें इतनीं… कहते हैं काम नहीं किया
जस्टिस नागरत्ना ने मौखिक टिप्पणी की कि महिला न्यायिक अधिकारियों के साथ व्यवहार के बारे में उनसे बात की जानी चाहिए। वे कोर्ट में सुबह से शाम तक बैठने की मजबूरी में महीने के कुछ खास दिनों में दर्द से राहत के लिए गोलियां लेती हैं। इस मामले में कुछ संवेदनशीलता होनी चाहिए। लंबित मुकदमे पूरे नहीं करने पर कार्रवाई की गई जबकि महिला जज कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती रही, भाई को ब्लड कैंसर है। खुद का गर्भपात हो गया था। कोर्ट के कामकाज में नोटिस जारी करना, गवाहों की जांच जैसे कई काम हैं। इसके बाद आप कहते हैं कि काम नहीं किया, आपकी पैंडेंसी है…ऐसा नहीं किया जा सकता।